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भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर भूल से भी ना करें ये खास काम

Janmashtmi special

Janmashtmi special

जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व, पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को पवित्र और शुभ माना जाता है, जिसमें श्रद्धालु उपवास रखते हैं, कीर्तन करते हैं और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पावन पर्व, हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत व्यापक है। भगवान श्रीकृष्ण, जिन्हें विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है, का जन्म राक्षसों के संहार और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था।

जन्माष्टमी की रात को श्रीकृष्ण की विशेष पूजा और आरती की जाती है, और मिडनाइट के समय भगवान के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। इस अवसर पर मंदिरों में विशेष झांकी और मटकी फोड़ जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जो भगवान की लीलाओं का प्रतीक है। लेकिन इस विशेष दिन पर कुछ धार्मिक नियम और परंपराएं भी हैं जिनका पालन करना आवश्यक माना जाता है।

काले वस्त्र का उपयोग न करें:

जन्माष्टमी के दिन काले वस्त्र पहनना शुभ नहीं माना जाता है। काले रंग को शोक और नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है, जबकि जन्माष्टमी एक उल्लासपूर्ण और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर पर्व है। इसलिए, इस दिन सफेद, पीले या अन्य हल्के रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

तुलसी पत्तियाँ न तोड़ें:

जन्माष्टमी के दिन तुलसी पत्तियाँ तोड़ना वर्जित है। तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिय माना गया है और इसे देवी तुलसी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी के पौधे से पत्तियां तोड़ने से भगवान नाराज हो जाते हैं। इसलिए, पहले से ही तुलसी पत्तियां तोड़कर रखनी चाहिए ताकि पूजा में इसका उपयोग किया जा सके।

तामसिक भोजन से बचें:

जन्माष्टमी के दिन तामसिक भोजन, जैसे कि मांस, मछली, अंडा या प्याज-लहसुन का सेवन करना निषिद्ध है। इस दिन शुद्ध और सात्विक भोजन करने का प्रचलन है, जैसे फल, दूध, और मिठाइयाँ।

गाय को भूखा न छोड़ें:

हिंदू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है और इसे पूजनीय माना जाता है। जन्माष्टमी के दिन गायों की सेवा और उन्हें भोजन कराना विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। गाय को भूखा छोड़ना अशुभ माना जाता है और इससे भगवान श्रीकृष्ण की नाराजगी हो सकती है, क्योंकि वे स्वयं गायों के संरक्षक माने जाते हैं।

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